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Showing posts from March, 2015

ज़िंदगी की रफ़्तार

ज़िंदगी कुछ  तितर-बितर सी गयी, ख़ुमारी चॅड कर कुछ उतर सी गयी, हाथ की रेखाए कुछ बदल सी गयी. सपने कुछ बिखर से गये, रफ़्तार कुछ धीमी सी हो गयी, मिज़ाज़ कुछ सूफ़ियाना सा हो गया, होले होले से हवा मंद सी हो गयी, खुशफ़हेमिया कुछ ग़लतफहमियो सी हो गयी, इंतज़ार कुछ लंबा सा हो गया, उत्साह कुछ सिमट सा गया, मूस्स्कुराहाट कुछ मुरझा सी गयी, दुआए कुछ कमज़ोर सी हो गयी, इन सबके बावज़ूद भी उमीदें कुछ बढ़ सी गयी और उमँगो से कुछ नये आयाम उजागर से हो गये!